कपास की नई किस्मों में सुधार की सख्त जरूरत, संसदीय समिति

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March 04, 2024 Agriclture Cotton News : रिपोर्ट के अनुसार 'समिति का आकलन है कि हमें भारत में कपास की उपज को सीमित करने वाले खेती के प्रमुख जलवायु कारकों की जानकारी है। समिति को प्रतीत होता है कि हमारी मिट्टी और जलवायु परिस्थिति के उपयुक्त/अनुकूल कपास के बीजों/पौधों को देश की सख्त जरूरत है।' समिति ने यह भी कहा कि विश्व के अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देशों की तुलना में हमारे देश में प्रति हेक्टेयर किलोग्राम उत्पादन बेहद कम

The Chopal, Cotton production,Seed varieties : संसद की श्रम, कौशल विकास और कपड़ा मामलों की संसदीय समिति ने अपनी हालिया रिपोर्ट में कहा कि भारत को कपास की नई किस्म के बीजों और पौधों की बेहद सख्त जरूरत है। ये बीज व पौधे मिट्टी व जलवायु परिस्थितियों के अनुकूल होंगे। नई किस्मों से जलवायु परिवर्तन के कारण कपास की सीमित हो रही उपज से निपटने में मदद मिलेगी।

रिपोर्ट के अनुसार ‘समिति का आकलन है कि हमें भारत में कपास की उपज को सीमित करने वाले खेती के प्रमुख जलवायु कारकों की जानकारी है। समिति को प्रतीत होता है कि हमारी मिट्टी और जलवायु परिस्थिति के उपयुक्त/अनुकूल कपास के बीजों/पौधों को देश की सख्त जरूरत है।’ समिति ने यह भी कहा कि विश्व के अन्य प्रमुख कपास उत्पादक देशों की तुलना में हमारे देश में प्रति हेक्टेयर किलोग्राम उत्पादन बेहद कम है।

समिति के नोट के मुताबिक, ‘कपास के अन्य प्रमुख उत्पादक देशों की तुलना में भारत में प्रति हेक्टेयर किलोग्राम बेहद कम है। समिति को जानकारी मिली कि देश में बीटी बीजों की तकनीक अत्यधिक पुरानी होने के कारण प्रति हेक्टेयर उत्पादन अत्यधिक कम है और देश में बीजों की नई किस्मों को अपनाए जाने की तत्काल जरूरत है।’

भारत में 2022-23 में कपास का उत्पादन क्षेत्र 13,061 हजार हेक्टेयर था लेकिन उत्पादकता केवल 447 किलोग्राम/हेक्टेयर था। हालांकि यूएसए में उत्पादकता 1065 किलोग्राम/हेक्टेयर था।

इसके अलावा संसदीय पैनल ने वस्त्र मंत्रालय से उत्पाद, उत्पादकता, कपास का उत्पादन बढ़ाने के लिए मिट्टी की प्रणाली का समग्र अध्ययन करने के लिए कहा। समिति ने किसानों की जेनेटिक रूप से उन्नत बीजों की इस समस्या को भी दर्ज किया कि किसानों को हर साल बीज खरीदने पड़ते हैं। इन बीजों के खरीदने के साथ ही किसानों के ऋण में फंसने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। इसके बाद किसानों को कीटनाशक, रसायन और श्रम की लागत के लिए और ज्यादा ऋण के मकड़जाल में फंस जाते हैं। ऐसे में उत्पादकता नहीं बढ़ने के बावजूद किसानों की लागत बढ़ जाती है।

रिपोर्ट के अनुसार, ‘समिति की यह दृढ़ राय है कि देश में जलवायु के अनुकूल बीटी या अन्य कपास के हाइब्रिड या बीटी बीजों को मुनासिब दामों पर मुहैया कराने की जरूरत है। इसके अलावा किसानों को गुणवत्ता परक बीजों की उपलब्धता मुहैया कराने के लिए वित्तीय मदद मुहैया कराई जानी चाहिए और खेती के सर्वश्रेष्ठ तरीकों को अपनाया जाना चाहिए।’

समिति ने लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किए बिना सभी कपास आयातों पर सीमा शुल्क से छूट देने के सरकार के फैसले पर भी टिप्पणी की। समिति ने यह भी कहा कि अन्य देशों के सस्ती कपास के आयात से भारत के कपास उत्पादक किसानों को कपास का मूल्य मिलने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।


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